रविवार, 11 सितंबर 2011

राजस्थान खटीक समाज का परिचय सम्मेलन 11 सितंबर, 2011 को अजमेर में

 राजस्थान खटीक समाज का परिचय सम्मेलन 11 सितंबर,  2011 को अजमेर  में  अखिल भारतीय खटीक महासभा   के    अध्यक्ष श्री छीतरमलजी टेपण की अध्यक्षता में  बडी धूम-धाम से संम्पन  हुआ । जिसमें आसपास के जिलो-गांवों /शहरों से कई अग्र बन्धुओं ने भागीदारी निभाई करीब 400 परिवारों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया।
कार्यक्रम में 176 युवक-युवतियों का परिचय कराया गया, जिनमें 108 युवक व 168 युवतियां शामिल थे।

यह परिचय सम्मेलन पूर्णत: नि:शुल्क था जिसमें आवास, भोजन व्यवस्था  श्री द्वारकाप्रसादजी गोविंदजी दायमा द्वारा की गयी ।
इस सम्मेलन के इस मौके पर अतिथियों ने सामाजिक कुरीतियों को रोकने के लिए संगठन होने की आवश्यकता पर बल दिया। कार्यक्रम में समाज के श्री दुर्गाप्रसाद खींचा, श्री एम.एल.चंदेल, श्री एम.सी.खींची, सहित अन्य लोगों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष श्री छीतरमलजी टेपण ने आभार जताया।
- भरत साँखला, अहमदाबाद

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011



तुलसीदास जी कहते हैं...प्रेम में कपट का कोई स्थान नहीं होता...

जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥

प्रीति की सुंदर रीति देखिये कि जल भी [दूध के साथ मिलकर] दूध के समान भाव बिकता है;  
परन्तु फिर कपटरुपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है [दूध फट जाता है] और स्वाद (प्रेम) जाता रहता है।

शनिवार, 29 जनवरी 2011

Khatik Samaj Gujarat: वाणी का जादू

Khatik Samaj Gujarat: वाणी का जादू

वाणी का जादू


केवल मनुष्य ही एक ऐसा जीव है, जिसे भगवान ने वाणी को मन मुताबिक ढालने का वरदान दिया है। वाणी हमारे विचारों को पवित्र और दूषित भी कर सकती है। इसलिए इस वाणी के उपहार का सदुपयोग करने का सुझाव बहुत से संतों ने दिया है...
 
राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरौ जौ चाहसि उजियार॥

तुलसी दास जी कहते हैं... जीभ ऐसी दरवाजे की देहरी है जहाँ पर राम नाम का "मणि दीप" रख देने से बाहर और भीतर दोनों का अँधेरा मिट जाता है और इस तरह जहाँ भी चाहो, वहां उजाला हो जाता है। इसका अर्थ वाणी की सच्चाई, सफाई, मधुरता और राम नाम के ध्यान और जाप से तो है ही, बल्कि ऐसा दीप रख पाने के मन के संकल्प और साहस से भी है।

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय॥

कबीर दास जी कहते हैं... मन के अहंभाव को खोकर ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि अपने को तो शान्ति मिले ही, दूसरे भी प्रसन्न हो जाएँ।

रविवार, 16 जनवरी 2011


अहंकार ने हराया, स्वार्थ ने डुबोया
इतिहास गवाह है कि अहंकार रावण का भी नहीं रहा। 
सच भी है-लोग मानते भी हैं-स्वीकारते भी हैं। 
बावजूद भूल पर भूल करते हैं। 
कम ही लोग होते हैं, जो लक्ष्मी-सरस्वती के दर्शन के बाद भी सामान्य रह पाते हैं। 
वर्ना, अहंकार में चूर लोग खुद को औरों से अलग समझने लगते हैं। 
यहीं से शुरू होता है पतन का रास्ता। 
क्यों हम पतन का रास्ता चुनें?  
क्यों यह मानें कि मृत्युदुख से हम परे हैं?